जह देखो वही अँधेरा ह,
अब तो जैसे किरण की कोइ उमीद हि न रही।मंगता था जब मोंत तो वो मिली नही,
अब तो तन्हाई भी अपना साथ चोरती नही।जिंदगी से जब जो चाहा उसका उल्टा मिला,
अब तो उमीद से भी मै घबराता हु।न जाने लौट के आयेगा कब वो पल,
जब जिंदगी को मे जी पाउँगा दोबारा।अब तो बस इन्तेजार है उस पल का ,
जब जिंदगी खुद लौट के आयेगी मुझतक दोबारा।
No comments:
Post a Comment