Wednesday, March 28, 2018

गैर हे ये जमाना

गैर हे ये जमाना

यु तो कभि हमारि भि थि हस्ति खिल्खिलति जिन्दगि,
पर शायद अब किसि कि नज़र सि लग गयि,
जिसे समझा था अपनो से ज्यदा,
वो अब परायो से ज्यदा बेगाने हो गये.

तिन्के तिन्के से सजा कर हमने ये विश्वास कि नीव लगायि,
खुसियो का ये आन्गन लगाया था हमने,
अविश्वास कि आन्धियो ने नीव तक मे अपनि जगह बनाई,
विश्वास कि दिवारो को दोबरा उठाना चाहा हमने,
पर अविश्वास कि दरारे किसिके अपनो ने और गेहरि करदि.

विश्वास न हमारा कम था उन्पर और न उन्का हमपर
बस कुछ मत्लबि लोगो ने अपना मत्लब सिध करने के लिये प्यार और साह्नुभुति के नाम पर उन्के मन मे विश का बिज बो दिया,
वो उन्हे भडकाते रहे अपने जस्बातो का हवाला देते हुऐ,
वह भि दुर होते चलेगए अपनो के प्यार का नाम लेते हुए.

कि थि उन्लोगो ने लाख कोशिशे पेहले भि हमसे उन्हे दुर करने कि,
पर हर बार वह असफ़ल रहे
अब जाके उनहे यह ग्यात हुआ, प्यार और अपनापन के नाम पे उसका मन विच्लित किया,
उन्कि थि जो सम्झ्दारि पेहले उसे दुर किया
बाद मे उसे हमसे दुर करना सुरु किया.

यु तो वो हमारे साथ रेत के आसियाने मे भि महल बनाने को बेकरार थे,
पर मोह मोह के धागे पिरोते हुए उन्होने उसे भि दौलत का नशा चखा दिया
वह हमसे अपने हि आन्गन मे किनार करने लग गये,
वापस उनकि दुनिया मे अपना साथ डुन्ड्ने लग गये.

पेहले हर बात और काम उन्को हमारि सुहानि लग्ति थि,
पर अब हर सान्स उन्हे गुलामि लगति है,
दुरि से डर लगता था जिनहे,
वो अब हर घड़ी दुर जाने कि बात करते हे.

ठेरने सि लगी है अब सान्से हमारि,
न जाने जिन्दागि कब क्या मोड़ लायेगि,
वो तो अपने अपनो के पास लौट चले जायेन्गे,
पर हमारे गम मे हमारे अपने बिखर जयेन्गे.

उम्मीद करता हूँ, सब वापस पेहले जैसा हो,
मजाक ना फ़िरसे इगो हो,
दुरिया फ़िरसे हमसे हमेसा के लिये दुर हो,
नज्दिकिया ना फ़िर कभि भि कम हो.
नज्दिकिया ना फ़िर कभि भि कम हो.

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